भारतीय काव्य में प्रकृति का चित्रण
Keywords:
सुमित्रानंदन पंत, बहुआयामी, पृष्ठभूमि, ब्रह्मांड, मेघदूत, गीतांजलिAbstract
भारतीय काव्य में प्रकृति का चित्रण सदैव से एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है, जो न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को अभिव्यक्त करता है, बल्कि मानवीय भावनाओं, संस्कारों, और सांस्कृतिक मूल्यों को भी सजीव करता है। वैदिक युग से लेकर समकालीन युग तक, प्रकृति का स्वरूप काव्य में विविध रूपों में प्रकट हुआ है। ऋग्वेद के मंत्रों में प्रकृति को देवी-देवताओं के रूप में पूजा गया, जहाँ नदियों, पहाड़ों, और वनों का पवित्रता के प्रतीक के रूप में वर्णन किया गया। महाकाव्यों, जैसे "रामायण" और "महाभारत" में, प्रकृति का सांस्कृतिक और नैतिक संदर्भों में उपयोग हुआ, जो पात्रों और घटनाओं को एक गहरी पृष्ठभूमि प्रदान करता है। भक्ति काल में सूरदास और मीरा ने प्रकृति के माध्यम से अपने भक्ति भाव और प्रेम की अभिव्यक्ति की। छायावादी कवियों, जैसे महादेवी वर्मा और सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति को मानवीय संवेदनाओं और अस्तित्व की गहराई से जोड़ा। आधुनिक और समकालीन कविताओं में, प्रकृति ने पर्यावरणीय चेतना और औद्योगिकरण के प्रभाव को उजागर किया। कालीदास की "मेघदूत" और टैगोर की "गीतांजलि" जैसी रचनाएँ प्रकृति के अद्वितीय चित्रण का उदाहरण हैं। प्रकृति केवल काव्य का एक विषय नहीं, बल्कि मानव और ब्रह्मांड के बीच एक गहन संवाद का माध्यम भी है। यह काव्य में सौंदर्य, शक्ति, और जीवन के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। भारतीय काव्य में प्रकृति का यह बहुआयामी चित्रण समाज, संस्कृति, और भावनाओं का प्रतिबिंब है, जो समय के साथ प्रासंगिक बना हुआ है।
References
• कालीदास - ऋतु संहार, मेघदूत
• तुलसीदास - रामचरितमानस
• सूरदास - सूरसागर
• जयशंकर प्रसाद - कामायनी
• महादेवी वर्मा - नीर भरी दुख की बदली
• सुमित्रानंदन पंत - पल्लव, ग्राम्या
• रवींद्रनाथ टैगोर - गीतांजलि
• ऋग्वेद - प्रकृति के देवत्व और स्तुति का उल्लेख।
• यजुर्वेद - पर्यावरणीय चेतना और प्रकृति के सम्मान के संबंध में श्लोक।
• डॉ. रामविलास शर्मा - आधुनिक हिंदी साहित्य और प्रकृति
• डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी - हिंदी साहित्य का इतिहास
• नागार्जुन - युगधारा, पर्यावरणीय समस्याओं पर आधारित कविताएँ।
• डॉ. नामवर सिंह - छायावाद का पुनर्मूल्यांकन
• मीरा बाई - भक्ति और प्रेम में प्रकृति का चित्रण।
• हरिवंश राय बच्चन - मधुशाला, काव्य में प्रकृति का दार्शनिक
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